मज़दूर

                  मज़दूर

                                          - Mr. Pradeep Yadav

ये बात ज़माना याद रखे मज़दूर हैं हम मजबूर नहीं I
ये भूख ग़रीबी बदहाली हरगिज़ हमको मँज़ूर नहीं ।।

कुचल कुचल के न फ़ुटपाथ को चलो इतना
यहाँ पे रात को मज़दूर ख़्वाब देखते हैं

आने वाले जाने वाले के लिए

सो जाता है फुटपाथ पे अख़बार बिछाकर,
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाता

मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं,
लेकिन मजदूरों के चेहरे पीले हैं


आने वाले जाने वाले के लिए,
आदमी मजदूर हैं राहें बनाने के लिए

मेहनत-कशों के हाथ के छाले

बुलाते हैं हमें मेहनत-कशों के हाथ के छाले
चलो मुहताज के मुँह में निवाला रख दिया जाए


अगर इस जहां में मजदूर का नामोंनिशां न होता
फिर न होता हवामहल और नही ताजमहल होता

साधन नहीं है कोई भी, भरने हैं कई पेट
इक टोकरी है, सर है कि मज़दूर दिवस है

श्रम करने वाला हर व्यक्ति मजदूर होता हैं

अमीरी में अक्सर अमीर अपनी सुकून को खोता हैं,
मजदूर खा के सूखी रोटी बड़े आराम से सोता हैं

बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को ।


परेशानियाँ बढ़ जाए तो इंसान मजबूर होता है
श्रम करने वाला हर व्यक्ति मजदूर होता है

चंद रोज मेरी जाना ...

सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान को ।


जिंदगी क्या किसी मुफलिस की कबा है,
जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते हैं।


चंद रोज मेरी जाना सिर्फ 'चंद ही रोज,
जुल्म की वाह में रहने को मजबूर है हम

कानों में मशीनों की सदा है

पसीने की स्याही से जो लिखते हैं इरादें को,
उसके मुक्कद्दर के सफ़ेद पन्ने कभी कोरे नही होते…

मेहनत से मिल गया जो सफ़ीने के बीच था
दरिया-ए-इत्र मेरे पसीने के बीच था

अब तक मेरे आ'साब पे मेहनत है मुसल्लत
अब तक मेरे कानों में मशीनों की सदा है

अब उन की ख़्वाब-गाहों में

अब उन की ख़्वाब-गाहों में कोई आवाज़ मत करना
बहुत थक-हार कर फ़ुटपाथ पर मज़दूर सोए हैं


किसी को क्या बताये कि कितने मजबूर हैं हम
बस इतना समझ लीजिये कि मजदूर हैं हम

लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
यकुम मई को भी मज़दूरों ने मज़दूरी की

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