22 मई 2020 जयंती विशेष : सती प्रथा का बिगुल बजाने वाले आधुनिक भारत के निर्माता, राजा राममोहन राय
22 मई 2020 जयंती विशेष : सती प्रथा का बिगुल बजाने वाले आधुनिक भारत के निर्माता, राजा राममोहन राय
22 मई 2020 को मूर्ति पूजा और समाज में फैली बुरी कुरुतियों का विरोध करने वाले देश के महान समाज सुधारक राजा राम मोहन राय की 247वीं जयंती है। 'भारतीय पुनर्जागरण के जनक' और 'आधुनिक भारत के निर्माता' के तौर पर आज भी याद किये जाने वाले राजा राम मोहन राय ने 19वीं सदी में समाज सुधार के लिए अनेक आंदोलन चलाए, जिनमें सबसे मुख्य सती प्रथा को खत्म करने के लिए बिगुल बजाया था, जो सफल भी रहा।
समाज में फैली कुरुतियों को दूर करने आंदोलन चलाया
भारतीय पुनर्जागरण के जनक राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को पश्चिम बंगाल में हुगली जिले के राधानगर गांव में हुआ था। तब यह बंगाल प्रेजीडेंसी का हिस्सा हुआ करता था। पिता रमाकांत राय हालांकि हिन्दू ब्राह्मण थे, लेकिन बचपन से ही वह कई हिन्दू रूढ़ियों से दूर रहे। महज 15 साल की उम्र में राजा राममोहन को बंगाली, संस्कृत, अरबी और फारसी भाषा का ज्ञान हो गया था। छोटी से उम्र में ही उन्होंने देश में काफी भम्रण किया। 17 साल की उम्र में उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध करना शुरू कर दिया। वह न सिर्फ समाज में फैली बुरी कुरुतियों को दूर करने में सबसे आगे रहे बल्कि उन्होंने देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
मूर्तिपूजा का विरोध किया
मूर्तिपूजा के विरोधी राजा राम मोहन राय की आस्था एकेश्वरवाद में थी। उनका साफ मानना था कि ईश्वर की उपासना के लिए कोई खास पद्धति या नियत समय नहीं हो सकता। पिता से धर्म और आस्था को लेकर कई मुद्दों पर मतभेद के कारण उन्होंने बहुत कम उम्र में घर छोड़ दिया था। इस बीच उन्होंने हिमालय और तिब्बत के क्षेत्रों का खूब दौरा किया और चीजों को तर्क के आधार पर समझने की कोशिश की।
सती प्रथा उन्मूलन
राजा राम मोहन राय ने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की थी, जो पहला भारतीय सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन माना जाता था। यह वह दौर था, जब भारतीय समाज में 'सती प्रथा' जोरों पर थी। 1829 में इसके उन्मूलन का श्रेय राजा राममोहन राय को ही जाता है। इसके अलावा उन्होंने उस दौर की अन्य सामाजिक बुराइयों- बहुविवाह, बाल विवाह, जाति-व्यवस्था, शिशु हत्या, अशिक्षा को भी समाप्त करने के लिए मुहिम चलाई और काफी हद तक इसमें सफलता पाई।
धर्म में भी तार्किकता पर जोर दिया
बहुत समय बाद जब वे घर लौटे तो उनके माता-पिता ने यह सोचकर उनकी शादी कर दी कि उनमें 'कुछ सुधार' आएगा, पर वह हिन्दुत्व की गहराइयों को समझने में लगे रहे, ताकि इसकी बुराइयों को सामने लाया जा सके और लोगों को इस बारे में बताया जा सके। उन्होंने उपनिषद और वेदों को पढ़ा और 'तुहफत अल-मुवाहिदीन' लिखा। यह उनकी पहली पुस्तक थी और इसमें उन्होंने धर्म में भी तार्किकता पर जोर दिया था और रूढ़ियों का विरोध किया।
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